11वीं क्लास की एक छात्रा ने आज के बदलते माहौल पर चिंता जताई है। वसंत वैली स्कूल में पढ़ने वाली शिवांतिका स्वरूप ने अपने एक आर्टिकल में लिखा- मैं भारत में पली-बढ़ी लकड़ी हूं। अक्सर माता-पिता रात में अकेले घूमने से मना करते हैं। वे मुझसे कपड़े चेंज करने को कहते हैं। उनके मुताबिक, कभी-कभी मेरे कपड़े सही नहीं होते। ऐसे कमेंट परेशान करने वाले होते हैं। हालांकि, पेरेंट्स ऐसा इसलिए बोलते हैं, क्योंकि उन्हें चिंता होती है। शिवांतिका ने यह भी लिखा- कुछ दिन पहले एक हेडलाइन पढ़ी- न्याय में देरी, न्याय न मिलने जैसा है। कोलकाता में सेक्शुअल वॉयलेंस के विरोध में रैली निकाली गई थी। कोलकाता में एक युवा डॉक्टर का उसके वर्कप्लेस में रेप और मर्डर कर दिया गया। इसके चलते अधिकारियों ने महिलाओं की नाइट शिफ्ट बैन कर दी। घटना के बाद मेरे मन में कुछ सवाल उठे- महिलाओं की नाइट शिफ्ट बैन के बजाय उनकी सुरक्षा सुनिश्चित क्यों नहीं की जाती? महिलाएं अपने वर्कप्लेस पर भयमुक्त माहौल में काम कर सकें, ऐसे कदम क्यों नहीं उठाए जाते? अपनी आजादी हासिल करने के लिए ताकतवर बनाना है
शिवांतिका ने लिखा- सरकार के तरफ से हो रहे बदलावों की गति बहुत धीमी है। हमें खुद आगे आना चाहिए। इस एहसास ने मुझे “प्रोजेक्ट सहेली” नाम का एक प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए प्रेरित किया। इसका उद्देश्य महिलाओं को अपना जीवन जीने जैसे शॉपिंग करना, काम करना, दोस्तों से मिलना और अपनी आजादी हासिल करने के लिए ताकतवर बनाना है। उन्हें सुरक्षित महसूस करने की मानसिकता बनाने के लिए, मैंने स्थानीय महिला दर्जियों के साथ मिलकर अप-साइकल किए गए सिलाई कचरे से बैग बनाए। इसमें ऐसी सीटी लगी है जिसे गले में पहना जा सकता है और खतरे की स्थिति में मदद के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। मैं अपने शहर के कम आय वाले इलाकों में हर शनिवार-रविवार ये बैग बांटती हूं। आज तक मैं 150 से ज्यादा बैग बांट चुकी हूं। वर्कशॉप्स के जरिए सिक्योरिटी टिप्स देती हूं
इसके अलावा हमारी पहचान, अक्षय प्रतिष्ठान और रॉबिन हुड आर्मी जैसे NGO के साथ मिलकर वर्कशॉप करती हूं। मैंने एक कॉर्पोरेट ग्रुप नेचर बास्केट के साथ भी कोलाबरेट किया है। हमने पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करने वाली कामकाजी महिलाओं वर्कशॉप की है। इन वर्कशॉप्स में मैं सेल्फ डिफेंस क्लास लेती हूं। सिक्योरिटी टिप्स देती हूं, जैसे सरकार का महिलाओं के लिए नया सिक्योरिटी एप डाउनलोड करने में मदद करना। हाल ही में मैंने अपना खुद का गेम बनाया है। यह सांप और सीढ़ी की तरह है, लेकिन महिलाओं को सुरक्षा के महत्व और विभिन्न सुरक्षा उपायों में कमियों को सिखाने में मदद करता है। वर्कशॉप्स के दौरान यह खेल खेलती हूं। इस पहल से मैं इस धारणा को चुनौती दे रही हूं कि महिलाएं असहाय हैं। मैं महिलाओं को खुद की सुरक्षा करने के लिए तैयार कर रही हूं। महिलाओं की सुरक्षा के बारे में सामाजिक मान्यताओं पर सवाल उठाने और उन्हें चुनौती देने में मैंने न केवल अपने आप में बदलाव देखा है, बल्कि उन महिलाओं में भी बदलाव देखा है जिनसे मैंने बात की। मैं यह संदेश फैलाना जारी रखना चाहती हूं कि सुरक्षा कभी भी हमारी स्वतंत्रता की कीमत पर नहीं आनी चाहिए।