सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 17 राज्यों और 7 केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे 1909 के आनंद मैरिज एक्ट के तहत सिख शादियों (आनंद कारज) की रजिस्ट्रेशन व्यवस्था 4 महीने में लागू करें। कोर्ट ने कहा कि नियम न बनने से सिख नागरिकों के साथ असमान व्यवहार हो रहा है और यह संविधान के समानता के अधिकार का उल्लंघन है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा, जब तक राज्य अपने नियम नहीं बनाते, तब तक सभी जगह आनंद कारज शादियों को मौजूदा विवाह कानूनों (जैसे स्पेशल मैरिज एक्ट) के तहत रजिस्टर्ड किया जाए। अगर दंपती चाहें तो विवाह प्रमाणपत्र में साफ लिखा जाए कि शादी आनंद कारज रीति से हुई है। यह आदेश उन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों पर लागू होगा जिन्होंने अब तक नियम नहीं बनाए हैं, जिनमें उत्तराखंड, कर्नाटक, तमिलनाडु, झारखंड, यूपी, असम, बंगाल, गुजरात, बिहार, महाराष्ट्र, तेलंगाना, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल, गोवा, मणिपुर और जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, चंडीगढ़, लक्षद्वीप, दमन-दीव, पुडुचेरी और अंडमान-निकोबार शामिल हैं। याचिकाकर्ता बोला- शादी प्रमाणपत्र पाने में दिक्कत होती है याचिका अमनजोत सिंह चड्ढा ने दायर की थी। उन्होंने कहा कि कई राज्यों में नियम न होने के कारण सिख जोड़ों को शादी का प्रमाणपत्र पाने में बड़ी दिक्कत होती है, जबकि कुछ राज्यों में यह सुविधा मौजूद है। कोर्ट ने कहा- रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था न होना केवल आधा वादा निभाना कोर्ट ने कहा कि कानून में आनंद कारज को मान्यता दी गई है, लेकिन रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था न होना केवल आधा वादा निभाना है। संविधान की भावना यही है कि हर नागरिक के अधिकार समान रूप से सुरक्षित हों। विवाह प्रमाणपत्र कई अधिकारों के लिए जरूरी सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि विवाह प्रमाणपत्र उत्तराधिकार, बीमा, भरण-पोषण और बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है। इसलिए राज्य और केंद्र दोनों की जिम्मेदारी है कि सिख नागरिकों को यह सुविधा समान रूप से मिले।
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