दिल्ली हाईकोर्ट बोला- एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर क्राइम नहीं, इसके नतीजे खतरनाक:कहा- जिसकी शादी टूटी, वह पति या पत्नी के प्रेमी से हर्जाना मांग सकता है

दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि व्यभिचार (Adultery) यानी एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर अपने-आप में कोई अपराध नहीं है, बल्कि यह एक वैवाहिक वजह है जिसे तलाक या वैवाहिक विवाद के मामलों में आधार बनाया जा सकता है। जस्टिस पुरुषेन्द्र कौरव ने कहा कि कोई भी पति या पत्नी अपने साथी के प्रेमी पर मुकदमा कर सकता है और अपनी शादी तोड़ने, आपसी प्रेम को नुकसान पहुंचाने के लिए आर्थिक मुआवजे की मांग भी कर सकता है। यह इसलिए कि इसके नतीजे खतरनाक हो सकते हैं। याचिका में पत्नी ने पति की प्रेमिका से भावनात्मक नुकसान और साथी की हानि के लिए मुआवजा मांगा है। हालांकि पति और उसकी प्रेमिका को नोटिस जारी किया गया है, ताकि इस बात पर फैसला हो सके कि शादी टूटने की वजह महिला है या नहीं। पहले जानें, क्या था पूरा मामला
यह मामला एक पत्नी की पति की प्रेमिका के खिलाफ दर्ज शिकायत से जुड़ा है। महिला ने 2012 में शादी की। 2018 में उसके जुड़वां बच्चे हुए, लेकिन समस्या तब शुरू हुई जब 2021 में दूसरी महिला उसके पति के व्यवसाय में शामिल हो गई। उसने आरोप लगाया कि दूसरी महिला उसके पति के साथ यात्राओं पर जाती थी। दोनों बेहद करीब आ गए। परिवार के दखल के बावजूद यह सब जारी रहा। महिला का पति सार्वजनिक स्थलों पर प्रेमिका के साथ दिखाई दिया, बाद में तलाक के लिए अर्जी लगा दी। इसके बाद पत्नी ने पति के खिलाफ हाईकोर्ट में केस किया। हालांकि पति और उसकी प्रेमिका ने दावा किया कि शादी से जुडे़ मामलों की सुनवाई फैमिली कोर्ट में की जानी चाहिए, हाईकोर्ट में नहीं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया
सुनवाई के दौरान बेंच ने जोसेफ शाइन मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र किया। जिसमें कोर्ट ने व्यभिचार को अपराध से मुक्त कर दिया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के लिए लाइसेंस घोषित नहीं किया था। अगर मौजूदा मामला आगे बढ़ता है तो इस तरह का यह पहला मामला बन सकता है। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- पत्नी हर्जाना मांग सकती है अब एडल्ट्री कानून के बारे में जान लीजिए अगर कोई शादीशुदा महिला या पुरुष किसी अन्य साथी (पुरुष या महिला) से रिलेशन बनाती है तो ऐसी स्थिति में एडल्ट्री कानून के तहत पति या पत्नी उस शख्स के खिलाफ केस कर सकता/सकती थी। यह भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के तहत अपराध था, जिसमें आरोपी को 5 साल की सजा और जुर्माना लगाने का प्रावधान था। ऐसे मामलों में महिला के खिलाफ न तो केस दर्ज होता था और न ही उसे सजा देने का प्रावधान था। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एडल्ट्री कानून को रद्द कर दिया। तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इस कानून को असंवैधानिक बताया था। उन्होंने कहा कि एडल्ट्री को क्राइम नहीं माना जा सकता। जोसेफ शाइनी की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया था। एडल्ट्री को फिर से अपराध बनाया जाए, संसदीय पैनल ने सरकार से की थी सिफारिश शादीशुदा महिला/पुरुष के किसी दूसरे से संबंध बनाने (एडल्ट्री या व्यभिचार) को फिर से अपराध बनाया जाना चाहिए, क्योंकि विवाह पवित्र परंपरा है, इसे बचाना चाहिए। संसदीय पैनल ने 2 साल पहले भारतीय न्याय संहिता (IPC) विधेयक पर अपनी रिपोर्ट में सरकार से यह सिफारिश की थी। रिपोर्ट में यह भी तर्क दिया गया है कि संशोधित व्यभिचार (एडल्ट्री) कानून को इसे जेंडर न्यूट्रल अपराध माना जाना चाहिए। इसके लिए पुरुष और महिला को समान रूप से उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए। पैनल की रिपोर्ट को अगर सरकार मंजूर कर लेती है तो यह सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच के 2018 में दिए उस ऐतिहासिक फैसले के खिलाफ होगा, जिसमें कहा गया था कि व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता और न ही होना चाहिए।

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