केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अगर राज्यपाल विधेयकों पर कोई फैसला नहीं लेते हैं तो राज्यों को कोर्ट की बजाय बातचीत से हल निकालना चाहिए। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सभी समस्याओं का समाधान अदालतें नहीं हो सकतीं। लोकतंत्र में संवाद को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हमारे यहां दशकों से यही प्रथा रही है। CJI बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने गुरुवार को लगातार तीसरे दिन भारत के राज्यपाल और राष्ट्रपति की तरफ से बिल को मंजूरी, रोक या रिजर्वेशन मामले की सुनवाई की। बेंच में CJI के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पी एस नरसिम्हा और ए एस चंदुरकर शामिल हैं। केंद्र के सुप्रीम कोर्ट में 5 जवाब… 20 अगस्त: SC बोला- सरकार राज्यपालों की मर्जी पर नहीं चल सकतीं सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि निर्वाचित सरकारें राज्यपालों की मर्जी पर नहीं चल सकतीं। अगर कोई बिल राज्य की विधानसभा से पास होकर दूसरी बार राज्यपाल के पास आता है, तो राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते। संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास चार विकल्प होते हैं- बिल को मंजूरी देना, मंजूरी रोकना, राष्ट्रपति के पास भेजना या विधानसभा को पुनर्विचार के लिए लौटाना। लेकिन अगर विधानसभा दोबारा वही बिल पास करके भेजती है, तो राज्यपाल को उसे मंजूरी देनी होगी। CJI बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने कहा कि अगर राज्यपाल बिना पुनर्विचार के ही मंजूरी रोकते हैं, तो इससे चुनी हुई सरकारें राज्यपाल की मर्जी पर निर्भर हो जाएंगी। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को यह अधिकार नहीं है कि वे अनिश्चितकाल तक मंजूरी रोककर रखें। बेंच में CJI के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पी एस नरसिम्हा और ए एस चंदुरकर शामिल हैं। पांच जजों वाली बेंच गुरुवार को लगातार तीसरे दिन ‘भारत के राज्यपाल और राष्ट्रपति की तरफ से बिल को मंजूरी, रोक या रिजर्वेशन’ मामले की सुनवाई जारी रखेगी। 19 अगस्त: सरकार बोली- क्या कोर्ट संविधान दोबारा लिख सकती है
इस मामले पर पहले दिन की सुनवाई में केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2025 वाले फैसले पर कहा कि क्या अदालत संविधान को फिर से लिख सकती है? कोर्ट ने गवर्नर और राष्ट्रपति को आम प्रशासनिक अधिकारी की तरह देखा, जबकि वे संवैधानिक पद हैं। पूरी खबर पढ़ें… राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे थे
15 मई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने अनुच्छेद 143(1) के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों को लेकर 14 सवाल पूछे थे। राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से यह राय मांगी थी कि क्या कोर्ट राष्ट्रपति को राज्य विधानसभा से पास बिलों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय कर सकता है? तमिलनाडु से शुरू हुआ था विवाद
यह मामला तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के बीच हुए विवाद से उठा था। जहां गवर्नर से राज्य सरकार के बिल रोककर रखे थे। सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को आदेश दिया कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। इसी फैसले में कहा था कि राज्यपाल की ओर से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सामने आया था। इसके बाद राष्ट्रपति ने मामले में सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी और 14 सवाल पूछे थे। पूरी खबर पढ़ें… …………………………….. ये खबर भी पढ़ें… गिरफ्तारी या 30 दिन हिरासत पर PM-CM का पद जाएगा, 5 साल+ सजा वाले अपराध में लागू होगा; सरकार बिल लाई प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री या किसी भी मंत्री को गिरफ्तारी या 30 दिन तक हिरासत में रहने पर पद छोड़ना होगा। शर्त यह है कि जिस अपराध के लिए हिरासत या गिरफ्तारी हुई है, उसमें 5 साल या ज्यादा की सजा का प्रावधान हो। गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को लोकसभा में इससे संबंधित तीन बिल पेश किए। तीनों विधेयकों के खिलाफ लोकसभा में जमकर हंगामा हुआ। पूरी खबर पढ़ें…